Wednesday 9 November 2016

कभी चल दिए साथ 

कभी चल दिए साथ सत्य के, अडिग रहे अपने वचनों पर 
भारत भू की मिटटी के  तरुवर, कण कण  टूटे झुके न पर 
देख चूका हूँ सारी दुनियाँ, और पढ़े इतिहास सभी 
भारत  जैसे धर्म समर्थक, दिखे न हमको कहीं कभी 

हरिश्चन्द्र, बलि की गाथाएं, राधेय, पितामह के वो प्रण 
वचन बद्धता के संरक्षण में, करते रहे सभी कुछ अर्पण
परिपाटी हम वही निभाते चले आरहे हैं इस युग में 
उनको देते नदियों का पानी जो दहशत फैलाते मेरे घर में 

हमने संकल्प लिया जग हित का निंदनीय कुछ भी न करेगे 
पर विषदंतक के दांत खींच उसको अवश्य विषहीन करेंगे 
कैसी बिडम्बना है, इस युग में सभी स्वार्थ में इतने रत हैं 
मुंह ढककर सोये है यदयपि ,भावी विनाश से अवगत हैं 

 
श्रीप्रकाश शुक्ल 

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