Thursday 11 July 2013

तेरे आने का असर है शायद 

दादुरों  ने एक स्वर में, फिर से पंचम स्वर उचारा   
  चातकी ने टक टकी भर, आस ले, नभ को निहारा  
      तेरे आने का असर है शायद, कि मन  पूछता है  
          साथिया क्यों जा रहा, छोड़ कर के ये नज़ारा  

वादियों में आज फिर से,  कोपलें मुस्का उठी हैं 
    भ्रमरियाँ मदहोश हो, मधुपान में  जी भर जुटीं हैं  
        तेरे आने का असर शायद, कि निधियां बादलों की 
          सर्वस्व अर्पण कामना से,  भूमि पर खुद ही लुटीं हैं  

तेरी बिदाई के समय, सबने कहा था अश्रु भर 
    लौट कर आना तुरत, होंगे प्रतीक्षित वर्ष भर
        पश्चिमी दक्षिण दिशा से आप आये धन्य हैं हम 
             आज सारे नृत्यमय हैं झील, सागर, सरि, सरोवर 


श्रीप्रकाश शुक्ल 

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