Tuesday 22 May 2012

मुक्तिका 001


डूबता जब भी सितारा 


गर्दिशें आ घेर लेतीं डूबता जब भी सितारा 
डूबती मझधार नौका रूठ जाता हर किनारा 

जिन्दगी इक़ मंच है और  कठपुतली सभी ,
चाहता जैसे नचाता, जगत का वो सृजनहारा  

आंधियां तूफ़ान आते, बाहुबल को तौलने,
विश्वास ले जो डट गया उससे चला कोई ना चारा 

धर्म ओंर रंग भेद के फुफकारते विषधर विषैले ,
वो बना अहिजित मुरारी जिसने कुचल इनको नकारा

था निहायत ही असंभव खाईयों को लांघ जाना 
पर खुदाया की महर से चिर गया तम तोम सारा 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

-

No comments:

Post a Comment