Tuesday 21 February 2012

प्रीत का पथ रोकने अवरोध बहुतेरे यहाँ


प्रीत का पथ रोकने अवरोध बहुतेरे यहाँ,
  अवरोध, जो, श्रम कर बैठाए, स्वयं तुमने
      प्रीत पथ, सरिता सरीखा चाहता निर्बाध बहना,
          पाषाणवत ऊंचे शिखर, पथ में उगाये स्वयं तुमने

धर्म, वर्ण, जाति के अपशिष्ट अनचाहे कहर,
   रंग , भाषा भेद के व्यतिरेक आड़े और टेढ़े
      असमानता की उग्रता पौड़ा रही विषबेल ही,
          स्वायत्तता की मांग जनती, नित्य ही दूभर बखेड़े

जिन्दगी का ध्येय सच्चा, हम रहें चाहे जहां
   सद्भाव की सरिता बहे, दुःख दर्द मिल कर बाँट लें
      आंसू पराया, आ छलक जाये हमारी आँख में
         पीर सीने में उठे, दुःख रही जो, दूसरे की कांख में

प्रीत का पथ मांगता समता, समझ, संवेदना
    सदभाव से दुर्भाव को निर्मूल कर आगे बढ़ें
        शूल से चुभते हुए अवरोध अनगिन खोदकर,
              डाल मट्ठा मूल में कौटिल्य सी क्षमता गढ़ें


श्रीप्रकाश शुक्ल

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