Thursday 14 July 2011

मैं कविता हूँ


कोई कहता मैं जन्मी हूँ , विरही की दुःख भरी आह में
कोई मानता जन्म हमारा , प्रियतम की अनथकी चाह में
कुछ भी हो, पर यह निश्चित है, जो कोई भी जनक हमारा
मैं दोनों की शांत प्रदाता, मैं दोनों की आँख का तारा


मेरा ही आश्रय पाकर , विरह गीत मुखरित हो जाते
आँचल में भर प्रेम संदेशे, प्रिया और प्रिय तक पहुंचाते
जब भी होता मन उदास, तड़पाता जब एकाकीपन
उर्जस्वित कर देता तन मन, तब मेरा निश्छल आलंभन


मैं अतीत के विस्मृत पल का, ह्रदय पटल पर चित्रण हूँ
मैं अव्यक्त भावनाओं, सपनों का सुमधुर सम्प्रेषण हूँ
ह्रद सागर में दबे ज्वार का, मैं उद्वेलित सिकता कण हूँ
मैं समाज के जन मूल्यों का मापक हूँ, इक दर्पण हूँ

मैं भिक्षुक की भूख, भ्रमर का गुंजन, शिशु की किलकारी हूँ
मैं चिरयौवना, सरस रस भावुक हृदयों की प्यारी हूँ
मैं प्रकृति का सौम्य रूप ,रमणी के अंतस की कोमलता हूँ
मैं अभिव्यंजना विचारों की, अहसासों की, मैं कविता हूँ


श्रीप्रकाश शुक्ल

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