Friday 27 May 2011

भंग हुआ ज्यों सपना


झांसा देते रहे दोस्त को,
गढ़कर झूंठे नए कथानक I
भिक्षा में पाते जो टुकड़े ,
रचते उससे कृत्य भयानक II


आतंकी गतिविधियों से,
ढाया जग में नित्य कहर I
नीवं मित्रता की आधारित,
अविश्वास की रेती पर II


फिर जब समझे चतुर मित्र,
कैसे वो अब तक छले गए I
आ धमके डोली लेकर,
दूल्हा औ सामां ले चले गए II


सारा आवाम था हैरत में,
ठनकाता माथा अपना I
आँखें फटीं, फटीं, रह गयीं ,
भंग हुआ ज्यों सपना II

श्रीप्रकाश शुक्ल

No comments:

Post a Comment