Wednesday 14 July 2010

बात बस इतनी सी थी


मैं चकित, हैरान हूँ, इस अंध मोहासक्ति से
सौंदर्य के प्रति तुम्हारी, दुर्विजित आसक्ति से
यह देह तो नश्वर, अचिर, हर व्यक्ति का परिधान है
इसमें रमाना मन, ह्रदय को, सर्वथा अज्ञान है
यदि लगाते लगन इतनी, ईश से, जगदीश से
भ्रान्ति, भय मिटते ह्रदय के, दिव्य शक्ति आशीष से
बात बस इतनी सी थी, पर ह्रदय में घर कर गयी
शूल सी चुभती हुयी, विक्षोभ मन में भर गयी
छोड़कर घर द्वार सारा ,मार्ग पकड़ा भक्ति का
प्रभु राम की गाथा गढ़ी, कौशल चरम अभिव्यक्ति का
और भी कृतियाँ रची, आनंद स्रोत जो बनी
भावपूरित,रस समाहित, नव, विमल निर्झर घनी
सर्वथा अभिभूत जन मन, राम भक्त शिरोमणि
शत शत नमन है हुलसिनन्दन, सुकवि कुल चूड़ामणि


श्रीप्रकाश शुक्ल
१२ जुलाई २०१०
शिकागो






बात बस इतनी सी थी

आपको खाना बनाना आता है क्या?
नहीं, और आपको ?
मुझे ? मैं ?
बात बस इतनी सी थी
रास्ते बदलने की आपसी सहमति थी

बहू कहाँ जा रही हो ?
कब तक आओगी ?
अरे तुमने माँ को बताया क्यों नहीं ?
बात बस इतनी सी थी
रास्ते बदलने की आपसी सहमति थी

अरे घर तो ठीक नहीं है
हर जगह कबाड़ फैला है
तो करते क्यों नहीं ?
बात बस इतनी सी थी
रास्ते बदलने की आपसी सहमति थी

श्रीप्रकाश शुक्ल
१२ जुलाई २०१०
शिकागो

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