Thursday, 10 June 2010





मेघा तुम क्यों नहीं वरसते
नहर नदी तालाब कुए  सब
               प्यासे नयनों तुम्हें निहारें
पशु पक्षी जन मानस सब मिल
             आतुर ध्वनि विक्षुप्त पुकारें


बाग बगीचे रूखे पड़े हैं
              बिना घास के सूखे रस्ते
मेघा तुम क्यों नहीं वरसते


काली घटाओं के आँचल मैं
              बैठे तुम किल्कोरें करते
उमड़ घुमड़ कर आश बंधाते
             फिर वह जाते अपने रस्ते
गाँव शहर मैं त्राहि त्राहि है
            बूँद बूँद को सभी तरसते
मेघा तुम क्यों नहीं वरसते


अन्नू, आयुष,माही, साईंशा,
            नाव बनाए बैठे कब से
अपलक राह तुम्हारी देखें
            विछुड गए तुम जब से
तुम इनका विश्वास न तोड़ो
            झम झम बरसो हंसते हंसते
मेघा तुम क्यों नहीं वरसते


श्रीप्रकाश शुक्ल
२३ अक्टूबर २००९
दिल्ली

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