मेघा तुम क्यों नहीं वरसते
नहर नदी तालाब कुए सब
प्यासे नयनों तुम्हें निहारें
पशु पक्षी जन मानस सब मिल
आतुर ध्वनि विक्षुप्त पुकारें
बाग बगीचे रूखे पड़े हैं
बिना घास के सूखे रस्ते
मेघा तुम क्यों नहीं वरसते
काली घटाओं के आँचल मैं
बैठे तुम किल्कोरें करते
उमड़ घुमड़ कर आश बंधाते
फिर वह जाते अपने रस्ते
गाँव शहर मैं त्राहि त्राहि है
बूँद बूँद को सभी तरसते
मेघा तुम क्यों नहीं वरसते
अन्नू, आयुष,माही, साईंशा,
नाव बनाए बैठे कब से
अपलक राह तुम्हारी देखें
विछुड गए तुम जब से
तुम इनका विश्वास न तोड़ो
झम झम बरसो हंसते हंसते
मेघा तुम क्यों नहीं वरसते
श्रीप्रकाश शुक्ल
२३ अक्टूबर २००९
दिल्ली
प्यासे नयनों तुम्हें निहारें
पशु पक्षी जन मानस सब मिल
आतुर ध्वनि विक्षुप्त पुकारें
बाग बगीचे रूखे पड़े हैं
बिना घास के सूखे रस्ते
मेघा तुम क्यों नहीं वरसते
काली घटाओं के आँचल मैं
बैठे तुम किल्कोरें करते
उमड़ घुमड़ कर आश बंधाते
फिर वह जाते अपने रस्ते
गाँव शहर मैं त्राहि त्राहि है
बूँद बूँद को सभी तरसते
मेघा तुम क्यों नहीं वरसते
अन्नू, आयुष,माही, साईंशा,
नाव बनाए बैठे कब से
अपलक राह तुम्हारी देखें
विछुड गए तुम जब से
तुम इनका विश्वास न तोड़ो
झम झम बरसो हंसते हंसते
मेघा तुम क्यों नहीं वरसते
श्रीप्रकाश शुक्ल
२३ अक्टूबर २००९
दिल्ली
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