Wednesday 27 May 2020

मैं किसान हूँ भारत का

महिमा मंडन बहुत हुआ 
पर अब नहीं सुहाता है

हर पांच साल के अन्तराल पर
लाल किला चिल्लाता है
करवट लेेगी कुबेर दृष्टि
पर चन्द्रगुप्त मुंह बिचकाता है  

सो जाता दिन जब पर्दों में 
सारा कुनबा उठ जाता है 
तपते हुये आसमान मेंं 
खेतों मेंं खफ जाता है

फसल ठीक तो होती है
घर तक मुठ्ठी भर जाता है
लिया उधारी का जो कुछ
खेतोंं पर ही चुक जाता है

जब कहते मुझे अन्नदाता
कोई कहते भाग्य विधाता
अन्तस में उठती एक पीर
अब "श्री" कुछ नहीं सुहाता है 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

दहाड़ी मजदूर

वो पौ फटने के पहले ही झुग्गी से बाहर आजाते हैं
गैंती, फावड़ा, औजारों संग चौराहे पर जम जाते हैं 

टकटकी लगाए पगडण्डी पर 
पूरी दोपहर गुजरती है 
सूरज के तीखे तेवर भी इनको डिगा नहीं पाते हैं  
 
किस्मत ने यदि साथ दिया तो
कोई फरिस्ता ले जाता है 
सो जाता दिन जब पर्दो में ये खेतों में खट जाते हैंं

मजबूरी के दौरो ने मजबूत बनाया है इतना 
आंधी, पानी तूफानों मेंं भी
ये कोसों चल जाते हैं 

इस हालत के जिम्मेदार हैं "श्री" सत्ता के भूखे लालची द्विपद
रख इन्हें अशिक्षित जो अपना उल्लू सीधा कर पाते हैं 
 
श्रीप्रकाश शुक्ल
मन्दिर तो बन जाएगा

,


अमरीका में भी मंदिर हैं
पर शायद आप नहीं जाते


जाते तो देख व्यवस्था
सुन्दर, अपने मन मेंं हरषाते

पशु प्रधान है देश हमारा
पशु पुरुषों का हाथ बटाते हैं
योगदान इतना है उनका
देवों सम पूजे जाते है

फूलों की उपज आय
का माध्यम, देश की आय
बढाते हैं.
वांछित कार्य निपट जाने पर
स्वयं उर्वरा बन जाते हैं ।
शायद कल्पनातीत होगा
सब कोई सोच नहीं पायेगा
नगर अयोध्या अनुपम होगा
सारा जग हर्ष मनायेगा ।।

*अयोध्या के विकास की तूफानी तैयारी शुरू*
*1. सबसे पहले अयोध्या तीर्थ विकास परिषद का गठन*
*2. अयोध्या में 100 करोड़ से रेलवे स्टेशन का विस्तारीकरण*
*3. अयोध्या से फैजाबाद के बीच 5 किलोमीटर का फ्लायओवर*
*4. अयोध्या में सरयू नदी के किनारे बनेगी राम भगवान की 251 मीटर की विश्व की सबसे बड़ी (STATUE OF UNITY से भी बड़ी) मूर्ति*
*5. अयोध्या में बनेगा अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा जिसका कार्य इतना जल्दी होगा कि अप्रैल 2020 में राम नवमी (रामजन्मोत्सव) पर पहली उड़ान भरी जा सके*
*6. अयोध्या में दिसंबर से 5 पांच सितारा होटल का काम शुरू होगा।*
*7. अयोध्या में दिसम्बर से 10 बड़े रिसोर्ट का काम भी शुरू होगा।*
*8. 2000 कारीगर 1 दिन में 8 घंटे काम करते है तो 2.5 वर्ष में मंदिर बन कर तैयार हो जायेगा। जबकि अभी 65% पत्थर तराशे जा चुके है।*
*9. अयोध्या में सरयू नदी में क्रूज चलाने की तैयारी*
*10. तिरुपति की तरह अयोध्या नगर बसने में लगेंगे 4 साल का समय*
*11. भारत के अयोध्या में बनने वाला राम मंदिर देश का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल बनेगा।*
*12. अयोध्या में बनेगा अंतरराष्ट्रीय बस अड्डा*
*13. अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के आसपास के 5 किलोमीटर के मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी भी बनने वाला ट्रस्ट देखेगा*
*14. मंदिर के पास 77 एकड़ परिसर में बनेगे कई धार्मिक संस्थान*
*15. अयोध्या के राम मंदिर के पास में गो शाला, धर्मशाला ओर वैदिक संस्थान के साथ कई धार्मिक परिसर बनाये जाएंगे।*
*16. अयोध्या में 10 श्री राम द्वार बनाये जाएंगे।*
*17. अयोध्या आध्यात्मिक नगरी के रूप में विकसित होगी।*
*18. 10000 रैनबसेरा का निर्माण होगा।*
*19. भगवान राम से जुड़े सभी कुंडो का पुर्निर्माण होगा।*
  श्रीप्रकाश शुक्ल
इन्डियाना अमरीका 

हंदवारा के वीरों की याद में

चलो कुछ गुनगुनाएं हम

तुम कहते चलो कुछ गुनगुनाएं हम
पर गला हमारा रुंंधा पड़ा है

देख रहा हूँ चिर निद्रा में,नील गगन के धवल सितारे 
लिपटे हुये तिरंगे में भारत माँ  के वीर दुलारे ।
छद्म भेड़ियों को निपटाने कूद पड़े जो निपट अकेले,
रग रग में शोणित उबल रहा पर हाथों में ताला जकड़ा है ।।

तुम कहते चलो कुछ गुनगुनाएं हम,
पर गला हमारा रुंधा पड़ा है

कल्पनातीत है, जब सारा जग एक गहनतम संकट मेंं है,
पल पल कराह की आवाजें हैं और निराशा घट घट में है।
देश पड़ोसी ,धूर्तता पूर्ण गति विधियों पर जब है हावी,
मानवता को भूल भुलाकर दुष्कर्मों पर निड़र अड़ा है।।

तुम कहते, चलो कुछ गुनगुनाएं हम
पर गला हमारा रुंंधा पड़ा है

युगों युगों के शोर्य, वीरता आज हमें ललकार रहे हैं,
शान्ति अहिंसा पथ दृढता को, 
कापुरुषी कह फटकार रहे हैं।
अब न और देरी सम्भव है, जगवाले अब तांड़व देखेंगे
अन्यायी को दंड़ित करना श्रेष्ठ धर्म है, ऐसा हमने पाठ पढ़ा है ।।

श्रीप्रकाश शुक्ल
वातावरण मेंं जब उदासी

वातावरण में जब उदासी सर्वत्र हो चादर पसारे
अश्रुपूरित आंख हो, हो आर्त ध्वनि हर एक द्वारे

हो समस्या जटिल इतनी सूझे न कोई हल कहीं
अनिवार्य है उस पल मनुज हो,आत्मबल के ही सहारे.

इक नाव में बैठे सभी ड़ूबते,बचते हैं सारे साथ ही,
लाज़िम है नाविक को दें सब हौसला, वो लगा सकता किनारे 

धैर्य, संयम, प्रेम, निष्ठा सात्विक कुछ भाव हैं,
संजीवनी साबित हुये हैं, कष्ट कितने भी उबारे
 
आदमी वो है  "श्री" जो मुसीबत मेंं न विचले 
क्या कोई मुश्किल है ऐसी जो नहीं टरती है टारे

श्रीप्रकाश शुक्ल

Thursday 14 May 2020

मार्ग से परिचय नहीं है

मार्ग से परिचय नहीं है कस्ती रुकी मझधार है ।
तूफान ज़िद पकड़े हुये है, नाविक विवस लाचार है ।।

इन्सान घवराया हुआ इन्सान से ही ड़र रहा ।
नजदीकियां घातक दिखें, दूरियों से प्यार है ।।

जन आपदा की इस घड़ी मेंं देश  सारा साथ है ।
सामर्थानुसार प्रत्येक जन सहयोग को तैयार है ।।

सागर से विस्तृत देश मेंं हैं पल रहे, अपवाद कुछ,
जिनकी, निजी कुछ कारणों से मनुजता वीमार है ।।
 
वैश्र्विक इस व्याधि से "श्री" सारे जगत मेंं कहर है ।
फैलाव इसका रोकना ही, मात्र इक उपचार है  ।।

श्रीप्रकाश शुक्ल
मार्ग से परिचय नहीं है

मार्ग से परिचय नहीं है कश्तीरुकी मझधार है ।
तूफान ज़िद पकड़े हुये है, नाविक विवस लाचार है ।।

इंसान घवराया हुआ इन्सान से ही ड़र रहा ।
नजदीकियां घातक दिखें, दूरियों से प्यार है ।।

जन आपदा की इस घड़ी मेंं देश  सारा साथ है ।
सामर्थानुसार प्रत्येक जन सहयोग को तैयार है ।।

सागर से विस्तृत देश मेंं हैं पल रहे, अपवाद कुछ,
जिनकी, निजी कुछ कारणों से मनुजता वीमार है ।।
 
सार्वत्रिक इस व्याधि से "श्री" सारे जगत मेंं क़हर 
फैलाव इसका रोकना ही, मात्र इक उपचार है  ।।

श्रीप्रकाश शुक्ल

मार्ग से परिचय नहीं है

मार्ग से परिचय नहीं है कश्तीरुकी मझधार है ।
तूफान ज़िद पकड़े हुये है, नाविक विवस लाचार है ।।

इंसान घवराया हुआ इन्सान से ही ड़र रहा ।
नजदीकियां घातक दिखें, दूरियों से प्यार है ।।

जन आपदा की इस घड़ी मेंं देश  सारा साथ है ।
सामर्थानुसार प्रत्येक जन सहयोग को तैयार है ।।

सागर से विस्तृत देश मेंं हैं पल रहे, अपवाद कुछ,
जिनकी, निजी कुछ कारणों से मनुजता वीमार है ।।
 
सार्वत्रिक इस व्याधि से "श्री" सारे जगत मेंं क़हर 
फैलाव इसका रोकना ही, मात्र इक उपचार है  ।।

श्रीप्रकाश शुक्ल

धूप छांह होंने वाले

धूप छांह होने वाले पल हर जीवन मेंं आते हैं ।
जीवन केवल संगीत नहीं है इसका वोध कराते है ।।

निशा अमावस की भी जीवन मेंं नितान्त आवश्यक है। 
तभी चांद दिखाई देता, तारे तभी मुस्कराते हैं ।।

जीवन का ध्येय आत्म उन्नति है जिसका साधन मात्र कर्म है।
जीवन नौका पाती मंजिल जब नाविक सही मार्ग जाते हैं ।।

जिसको कांटा चुभा नहीं, वो कैसे समझे दर्द शूल का ।
अपनी बीती से ही हम, अपनी समझ बढ़ाते हैं ।।
 
अगर अंधेरी रात है "श्री,"तो दिवस उजेला आयेगा ही ।
जो इस विश्वास को धारण करते कमी नहीं पछताते हैं ।।

श्रीप्रकाश  शुक्ल

धूप छांह होंने वाले

धूप छांह होने वाले पल हर जीवन मेंं आते हैं ।
जीवन केवल संगीत नहीं है इसका वोध कराते है ।।

निशा अमावस की भी जीवन मेंं नितान्त आवश्यक है। 
तभी चांद दिखाई देता, तारे तभी मुस्कराते हैं ।।

जीवन का ध्येय आत्म उन्नति है जिसका साधन मात्र कर्म है।
जीवन नौका पाती मंजिल जब नाविक सही मार्ग जाते हैं ।।

जिसको कांटा चुभा नहीं, वो कैसे समझे दर्द शूल का ।
अपनी बीती से ही हम, अपनी समझ बढ़ाते हैं ।।
 
अगर अंधेरी रात है "श्री,"तो दिवस उजेला आयेगा ही ।
जो इस विश्वास को धारण करते कमी नहीं पछताते हैं ।।

श्रीप्रकाश  शुक्ल

धूप छाँह हो जाने वाले  
 
मानव जीवन इक क्रीड़ा स्थल है 
आपाधापी है,उथल पुथल है 
है नाच रहा नर, मर्कट जैसा 
नचा रहा है,भौतिक सुख पैसा 

धूप छाँह हो जाने वाले, 
शीश बिठा, ठुकराने वाले 
खेल, अनेकों पड़ें खेलने 
हार जीत क्षण,पड़ें झेलने  

आते कभी हवा के झोंके 
मेघों की मार तड़ित के टोंके 
जग कहता विधि के लेखे है 
अंतस कहता मिटते देखे हैं 

जीतते वही, जो कर्मवीर हैं 
मंजिल पाने को अधीर हैं 
जिनके मन विश्वास अटल है 
सद्भावों की "श्री" है, निष्ठा का बल है 

श्रीप्रकाश शुक्ल 
तोतापंखी किरणों में

तोतापंखी किरणों मेंं क्यों घोल रहे 
संगीनी दूषण ।
सर्व धर्म सदभाव संस्कृति, सदा रही अपना आभूषण ।।

अनवर आदत, लल्लन भाई, किक्कर सिंह, फिरदोस, कृष्टफर।
बड़े घने पीपल के नीचे साथ बिताए कितने अमोल क्षण।।

राम नाम की ओढ़ चदरिया, दया धर्म क्यों बेच रहे हो ।
नफरत की चिनगारी दे, क्यों उकसाते हो विष्फोटक कण ।।

अमन चैन का भ्रम पाले, सपने अनेक हैं रखे संजोये ।
नही समझते कर्म हमारे बनते हैंं
 कल का दर्पण ।।

अहं त्याग हम सबको "श्री" इस बाग की रक्षा करनी है ।
रोपो प्यार, रखो सींचे, हर इक पौदे को दो पोषण ।।

श्रीप्रकाश शुक्ल
तोतापंखी किरणों में

तोतापंखी किरणों मेंं क्यों घोल रहे 
संगीनी दूषण ।
सर्व धर्म सदभाव संस्कृति, सदा रही अपना आभूषण ।।

अनवर आदत, लल्लन भाई, किक्कर सिंह, फिरदोस, कृष्टफर।
बड़े घने पीपल के नीचे साथ बिताए कितने अमोल क्षण।।

राम नाम की ओढ़ चदरिया, दया धर्म क्यों बेच रहे हो ।
नफरत की चिनगारी दे, क्यों उकसाते हो विष्फोटक कण ।।

अमन चैन का भ्रम पाले, सपने अनेक हैं रखे संजोये ।
नही समझते कर्म हमारे बनते हैंं
 कल का दर्पण ।।

अहं त्याग हम सबको "श्री" इस बाग की रक्षा करनी है ।
रोपो प्यार, रखो सींचे, हर इक पौदे को दो पोषण ।।

श्रीप्रकाश शुक्ल


चढ़ाये मैंने जब कुछ स्वर

चढ़ाये मैंने जब कुछ स्वर, कहा शारदे इतना तो उपकार करो
भक्ति भाव से अर्पित मेरी स्तुति मां स्वीकार करो

जीवन बीता नीरवता मेंं ज्ञान ध्यान से दूर रहा
शब्दों मेंं माधुर्य नहीं है रूखा अवगुंठन अंगीकार करो

पुजापा कुछ भी साथ नहीं लाया खाली हाथ चला आया हूं
पर मैं दास आपका हूं, इतना तो एतवार करो

नहीं चाहता धन दौलत मैं, केवल कृपा कांक्षी हूं
वरद हस्त रख शीश हमारे निष्ठा का संचार करो

मैं बन्दी हूं ऐसे घर मेंं, जहाँ चारो ओर अंधेरा है 
है आस टिकी मां ंंतेरे ऊपर बिसराओ या प्यार करो ।

श्रीप्रकाश शुक्ल

चढाये मैंने कुछ स्वर

मैं पंछी उद्धिग्नमना, रहा भटकंता जीवन भर
निज पौरुष ही संबल था, विश्वास तनिक न भावी पर

है मेहनत ही प्रधान जीवन में, ऐसा सारे जग ने जाना
बिन पुरषार्थ न तिनका खिसकेगा ऐसा मैंने भी माना 

मिली कुबेर निधि जीवन में पर मन में पौढ़ी अशांति थी 
हिय में व्याकुलता की लहरें, कुछ अजीब सी भरी भ्रान्ति थी 

गुरु ने समझाया, वत्स न जब तक पास इष्ट के जाओगे
सब कुछ पा सकते हो,पर मन की शान्ति न पाओगे 

पहुंचा तुरन्त ही इष्टदेव घर, चढाये मैंने कुछ स्वर
हलचल हुयी हृदय मेंं, उपजी सुखदायक आवाज मधुर 

यदि प्रेम, सहिष्णुता, भाई चारा जीवन पथ में अपनाओगे
और साथ में निष्ठा प्रभु पर, निःसंदेह शान्ति सुख पाओगे ।
  
श्रीप्रकाश शुक्ल

संभव अभिव्यक्ति नहीं

प्रागंण में कोलाहल है पंछी आकुल चिल्लाते हैं 
और निठल्ले खड़े सड़क पर नारे नये लगाते हैं 

बहुयामी ढ़ेरों काम हो रहे सारे के सारे जन हित मेंं
पर मतलवी स्वार्थ प्रेरित जनता को भड़काते हैं

कैसी बिडम्बना है कि जो पढ़े लिखे और ज्ञानी भी हैं
पर सस्ती सी लोकप्रियता हित बात अनर्गल कर जाते हैंं 

 दिल पर चोट पहुंचती जो, है उसकी संभव अभिव्यक्ति नहींं ं
शब्द और भाषायें अपनी सीमा पर आ रुक जाते हैं 

प्रति पल चिन्हित रहता "श्री" छवि अपने घर की धूमिल न हो
पर जयचन्दों की भीड़ देख तेवर खुद ही चढं जाते हैंं

श्रीप्रकाश शुक्ल