भले ही साथ मत
भले ही साथ मत देना,न उकसाना अबोधों कोन रखना मोड़कर बांधे, कभी सुकुमार पोधों कोएक दिन होकर बड़े ये, जिन्दगी का मर्म समझेंगेघिनौनी सोच से उपजे, तुम्हारे कर्म समझेंगेबंधा पानी जब खुलता है, तो चट्टानें निगलता हैकुर दबे अरमान का ज्वालामुखी सम उभरता हैहम चल पड़े संकल्प ले, बागवां अपना सजाने कोअरे क्यों कर रहे कलुषित हमारे आशियाने को
मेरी गलियों की मिट्टी से, तुम्हारी सांस रुकती हैखिले हर फूल की खुशबू, तुम्हारे दिल में चुभती हैमगर जो ठान बैठे हैं,वो भागीरथ इरादा हैविषैले सांप कुचले जायेंगे,ये मेरा वादा है
मारते हम न चीटी तक, पिलाते दूध व्यालों कोहैं करते माफ हम शिशुपाल जैसे शतक पापों कोसबको चलेंं हम साथ ले, विश्वास देकर, राह अपनीपर नहीं भाती है "श्री", कोई कुटिलता पूर्ण करनी
श्रीप्रकाश शुक्ल