इ-कविता की तीसरी समस्या पूर्ती का कार्य, मंच के वरिष्ठ सदस्य श्री एस ऍम चंदावरकर जी को सौपा गया. श्री चंदावरकर जी भावुक ह्रदय के बड़े ही ज्ञानी ध्यानी प्रबुद्ध व्यक्ति हैं उन्होंने वाक्याँश दिया " तेरे रूप की पूनम का पागल, मैं अकेला " पसीने छूट गए उनसे अनुनय विनय की कि श्रीमान जी इस उम्र में कहाँ कल्पना को दौड़ाने की आज्ञा दे रहे हैं पहिले तो बोले की कवि ह्रदय के लिए सब कुछ कभी भी सम्भव है फिर तरस खाकर दूसरा वाक्याँश दिया जो था " मन का इकतारा तुमही तुमही कहता है " मन में आया की दोनों पर ही रचना लिखी जाए .हार क्यों मानी जाय तो पढ़िए दोनों ही रचनाएं :-
तेरे रूप की पूनम का पागल, मैं अकेला
अनेकों रूप हैं तेरे, अनेकों काम हैं तेरे
तुझे दिल से बुलाने के, अनेकों नाम हैं तेरे
जगत का तूं सृजन करता, लगाता नित नया मेला
तेरे रूप की पूनम का हूँ पागल, मैं अकेला
लगाई लौ तुम्ही से है, जगत की सम्पदा तजकर
चाहा था उठाओगे मुझे, तुम हाथ फैलाकर
पर हुयी क्या भूल कुछ ऐसी, मुझे जो गर्त में ठेला
तेरे रूप की पूनम का पागल हूँ, मैं अकेला
तेरा ही नाम लेकर मैं, बिताऊँ हर दिवस हर पल
तेरे ही गीत नित गाऊँ, चढ़ाऊँ, फूल मेवा फल
दया का दान दो भगवन, मिलन की अब यही बेला
तेरे रूप की पूनम का पागल हूँ, मैं अकेला
तू ही आधार जगती का, तू ही आलम्ब है सबका
कृपादृष्टी हुयी जिसपर, हुआ जीवन सफल उसका
तू करुना का सागर है, दयालु और अलबेला
तेरे रूप की पूनम का पागल हूँ, मैं अकेला
श्रीप्रकाश शुक्ल
१३ मई २०१०
लन्दन
मन का इकतारा तुमही तुमही कहता है
कोई अपना है, मन को जो,
सबसे सुन्दर लगता है
जिसकी उर धड़कन को सुनकर,
मेरा भावुक स्वर जगता है
पलकें रोती जिसे याद कर,
संचित धैर्य सिसकता है
मन का इकतारा उसे याद कर,
तुमही तुमही कहता हैs
सुख अपना तुमको देने मैं
एक अनूठा सुख मिलता है
जब छिन जाता वो सुख हमसे,
पल भर भी जीना खलता है
तुम्हें भुलाना सरल नहीं,
यह्सास तेरा प्रतिपल रहता है
मन का इकतारा सदैव,
तुमही तुमही कहता है
तुम आयी थी जीवन में बन,
शीतल,अरुणिम,भानु किरन
तृप्त हुआ था मेरा तन मन,
पाकर प्रेमयुक्त आलिंगन
तेरी एक झलक पाने को,
मन बौराया रहता है
मन का इकतारा प्रतिपल,
तुमही तुमही कहता है
कितनी पीड़ा भरी ह्रदय में,
कितना मधुमय राग सलोना
छुपा ले गयी तुम आँचल में
मेरा चंचल मन मृग छोना
प्यार मिले प्रिय का जी भर जब,
मन प्रमुदित पावन रहता है
मन का इकतारा चातक बन,
तुमही तुमही कहता है
श्रीप्रकाश शुक्ल
१३ मई २०१०
लन्दन
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