कविता लिखने के पहिले एक विचार आया कि रचनाएँ कैसी होनी चाहिए,किसके के लिए होँ और कौन,, कहाँ उन्हें पढ़े.. अगर सोच समझ कर एक ऐसी मुहिम छेड़ दी जाये जो हमारे पीछे छूटे हुए साथियों को एक प्रकार की प्रेरणा दे, और उनमें मुख्य धारा मे आने कि लिए प्रोत्साहित करे तो लिखना कुछ कारगर होगा . यही सब इस रचना में है :- पढ़िए
अभियान
नहीं चाहता मेरी कृतियाँ,
मधुशाला में गायी जाएँ
नाचें कूदें शब्द नटी बन
सम्पन्नों का जी बहलायें
मुझे नहीं चिंता उनकी,
जो रह्ते हैं प्रागारों में
मेरी कृतियाँ उनको अर्पित,
जो पलते हैं गलियारों में
चाह नहीं हों शब्द अलंकृत,
लोकेट मोती पन्नों के
मैली गुदरी ही ओढ़े हों,
जीवन दान विपन्नों के
सोयी हुयी चेतना जागे,
मन में भरे आत्म सम्मान
अग्नि उठे शीतल जल में,
भिक्षुक में उपजे निज मान
कारुण्य झरे पाषाणों से,
अहम् बने सौंदर्य गान
तम छ्टे, उगे अनुपम आभा,
कौए छेडें मधुर तान
पीडित, शोषित और उपेक्षित,
करें स्व राष्ट्र पर गुमान
यदि ऐसा सम्भव हो पाये
सार्थक हो मेरा अभियान
श्रीप्रकाश शुक्ल
१४ मार्च २०१०
दिल्ली
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