२८ साल पहिले अपने एक मित्र निर्मल कुमार दुआ से बातचीत करते समय परिहास में, मैंने दहेज़ का समर्थन कर दिया .मित्र बहुत संवेदनशील और दृढ़ विचारों के थे प्रत्योत्तर ऐसा था कि कभी न भूल सका और न भूल ही पाऊंगा .क्या था सुनिए इस छोटी सी रचना में जो मुझे अतिशय प्रिय है :-
भिखारी
एक सरकारी अधिकारी
अपने मित्र से बात कर रहे थे
बोले मैं तो अपने बेटे की
शादी में दहेज़ जरूर लूँगा
मित्र ने कहा दहेज़ लेना
भीख मांगने के बराबर है
बोले क्यों न लूं ?
मैंने लड़के को
पदाया लिखाया,
इतना खर्च जो किया है
फिर अपनी दो बेटिओं की शादी में
खूब दहेज़ भी दिया है
मित्र ने कहा, बंधु
भीख तो तुम अब भी
मांग रहे हो
फर्क इतना है
कि अब अपने कोढ़
दिखाकर मांग रहे हो
कोढ़ दिखाकर मांग रहे हो
श्रीप्रकाश शुक्ल
२५ अक्टूबर १९८२
हैदराबाद
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