एक रचनाकार को काव्य सृजन में अनेकानेक विषमताओं को झेलना पड़ता है क्या क्या प्रतिक्रियाएं आती है और कहाँ कहाँ से पता ही नहीं रहता . ऐसे हालात में उसे क्या करना चाहिए, ये सब निम्न रचना में देने का प्रयास किय है कहाँ तक सफलता मिली है आप सब निर्णय करेंगे, :-
सृजन यज्ञ
हे कवि हे सृजनकार,
जो मूल्य संजोये शिष्टि में
उनको कर परिलक्षित तूं ,
अपनी करुनामय दृष्टि में
दुर्भाव, धृष्टता भरे समीक्षण
अनगिन अवरोधन लायेंगे
मित्रों के ईर्षा भरे अनुसरण,
दर्दीला बिष फैलायेंगे
नीलकंठ बन यह सब तुमको,
शांत भाव पी लेना है
आलोचक के प्रत्योत्तर में,
होंठों को सी लेना है
यदि मार्ग चुना है रचना का,
तो फिर जी, कृतित्व के बल पर
अपनी प्रतिभा से हो प्रदीप्त,
अपने कौशल को उन्नत कर
कुत्सित, कटु, कटाक्ष ठुकरा,
सुजन-यज्ञ में समिधा जोड़
दुष्टों के गर्हित शब्द भुला,
मत भाग, सृजन मैदान छोड़
श्रीप्रकाश शुक्ल
१४ जून २०१०
लन्दन
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