इ-कविता की दूसरी समस्या पूर्ती का वाक्य था " तन पुलकित, मन प्रमुदित,माँ कि सुधियाँ पुरवाई सी " ये वाक्य श्रीमती डॉ शकुंतला बहादुर ने Mothers' Day के दिन चुना .मां शब्द से जुड़े होने के कारण इस समस्या पूर्ती में ढेर सारी एक से बढ़कर एक रचनाएं आयीं .मैंने भी अपना योग दान दिया माँ को प्रणाम कर जो लिखा वो यह था :-
तन पुलकित, मन प्रमुदित,माँ कि सुधियाँ पुरवाई सी
सुधियाँ माँ की अनगिनत असीमित,
जिनके रंग न धूमिल होते
सुरभित सुमनों के दिव्य स्वप्न बन ,
मन के हर कोने में सोते
जिनकी गंध कभी न उडती,
लगती ना ही, अलसाई सी
तन पुलकित,मन प्रमुदित
माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
निष्काम कर्म का पाठ पढ़ाना,
माँ का सदैव ही यह कहना
जीवन में सुख है,दुःख भी है,
हसकर दोनों ही सह लेना
बातें माँ की सरस, मधुर, क्रमबद्ध, अर्थमय,
करती गुंजन शहनाई सी
तन पुलकित, मन प्रमुदित,
माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
जीवन में आगे बढ़ने की,
राह बता, नव लक्ष्य दिए
अहम् कर्म कर्त्तव्य निभाना,
पर सेवा के, बचन लिए
याद सारगर्भित बातों की,
लगती प्रतिपल सुखदाई सी
तन पुलकित, मन प्रमुदित,
माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
जितने थे तुमने दीप गढ़े,
सब ज्योतिर्कन बिखराते हैं
तम निगल निगल रजनी का,
वे भोर सुहानी लाते हैं
स्नेह भरा इतना असीम,
कि ज्योति जले मन भायी सी
तन पुलकित, मन प्रमुदित,
माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
जितनी हैं सागर में लहरें,
अम्बर में जितने तारे हैं
मन ने उतनी बार तेरी,
स्मृति के पाँव पखारे हैं
मधुर याद सोयी सुधियों की,
मन में भरती तरुनाई सी
तन पुलकित,मन प्रमुदित,
माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
श्रीप्रकाश शुक्ल
लन्दन
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