२४ अप्रैल २०१० को इ-कविया मंच के सह -संचालक श्री राकेश खंडेलवाल, जो कि एक अच्छे रचनाकार एवं गीतकार हैं,ने एक वाक्य दिया जिसको रचना में समाहित करके काव्य की किसी भी विधा में लिखना था, मुझे अभी तक स्वाम में छंद बद्ध रचना की क्षमता तो दिखी नहीं अतः जो भी विचार आये मुक्त छंद में ही लिख भेजे .सदस्यों को अच्छे लगे और सराहा भी . आइये आप भी देखे कितनी जान है रचना में.
वाक्याँश था :-पीढियां अक्षम हुयी हैं, निधि नहीं जाती संभाले,
पीढियाँ अक्षम हुयी हैं,निधि नहीं जाती संभाले
गुरु, मनीषी, ज्ञान परिपूरित, विचक्षण,
तम मिटा, लाये उजाले
होम कर सर्वस्व अपना,
घोर दुःख के, पयद टाले
जन्म जन्मान्तर संयोजित ,
वह ज्ञान निधि धूमिल पड़ी है
पीढियाँ अक्षम हुयी हैं,
निधि नहीं जाती संभाले
है अपेक्षित तरुण ही,
इस देश के नायक बनेगे
शीश धर संस्कृत सनातन,
कलुष के सायक बनेगे
पर उन्हें जकड़े हुए हैं
पच्छिमी वो व्याल काले
पीढियां अक्षम हुईं हैं,
निधि नहीं जाती संभाले
पर मेरा विश्वास अविचल,
नित नये अंकुर उगें
मूल्य रग रग में समाहित
जो गये, सदियों से पाले
मत कहो तारुण्य है तपहीन, तेजस-क्षीण,
और भूले से कभी भी मत कहो
पीढियाँ अक्षम हुयी हैं
निधि नहीं जाती संभाले
भीष्म लेटे बाण शैया,
ज्ञान की गंगा बहाते
और अगणित पार्थ भू को
छेद, जलनिधि, अवनि लाते
पुरुषार्थ, शक्ति और धृति:
पीढियाँ कर के हवाले
पीढियाँ सक्षम अभी भी,
निधि रखेंगे वो संभाले
श्रीप्रकाश शुक्ल
२४ अप्रैल २०१०
दिल्ली
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