अधिकांशतः ऐसी रचनाएं पढ़ीं जहाँ यह बताया गया कि सास, ससुर और बेटा मिलकर बहू को दुखी करते हैं लेकिन समय बदल गया है और अब ऐसा कुछ भी नहीं है यह सब हालात भर निर्भर करता है कि कौन कब और कैसे कितना उत्तरदायित्व निभाता है आईये देखते हैं अमेरिका में :-
अमरीका के सास, बहू
बहुरिया के हिमायतीन लिख धरयो बहुत कछु,
बहुरिया जस हमेश पीड़ित प्रताड़ित रहिन
सास और ससुर दोनों ने जुलुम ढायो
ननद फूंके आग, बिटवा कछु न कहिन
अस हालात अब तक तो चालत रहिन
पर अब गंगा उल्टी न बहन, सीधी बहत है
पति दुखियारे की कोऊ सुनाई नहिन
बहुरिया नचावे नाच पीड़ित पति नचत है
थोड़ो सो ध्यान इस ओर लेन चहूँ
बचवा जब रोवत आज, बाप को बुलात है
बाप तुरत डायपर बदल, नहलाय धुलाय,
कापड पहिनाय कांधे सुलात है
बहुरिया सारे सारे दिन वेब सर्फ़ करत
जीमेल चैट पर सबसे बतियात है
सांझ होत बिटवा जैसे ही घर मां घुसत
शौपिंग की लिस्ट थाम दोडो चलो जात है
सोवन के पहिल डिशवाशर मां बर्तन भरत
फिर सब जने जब सोवन चले जात हैं
अपनों लैपटॉप लै दफ्तर को काम करे
कैसे हूँ नौकरी बचे, ईश्वर से मनात है
यह तो बात हुयी बिटवा की
सास हू डरी डरी कछु कहत सकुचात है
बचवा के रोवन की जैसे ही आहट सुनत
चादर फेंक तुरत ही दौड़ी चली जात है
ससुर जी की नीद कबहूं न पूरी होत
सारी सारी रात जाग गीता पढ़त कट जात है
सोचत ससुर अब समय ऐसो आय गयो
जो कछु मरद कियो सूद समेत सब चुकात है
श्रीप्रकाश शुक्ल
११ दिसम्बर २००९
दिल्ली
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