Friday 29 April 2022

जीवन.एक क्रीड़स्थल मानव जीवन इक क्रीड़ा स्थल है आपाधापी है,उथल पुथल है है नाच रहा नर, मर्कट जैसा नचा रहा है,भौतिक सुख पैसा धूप छाँह हो जाने वाले, शीश बिठा, ठुकराने वाले खेल, अनेकों पड़ें खेलने हार जीत क्षण,पड़ें झेलने आते कभी हवा के झोंके मेघों की मार तड़ित के टोंके जग कहता विधि के लेखे है अंतस कहता मिटते देखे हैं जीतते वही, जो कर्मवीर हैं मंजिल पाने को अधीर हैं जिनके मन विश्वास अटल है सद्भावों की "श्री" है, निष्ठा का बल है श्रीप्रकाश शुक्ल

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