Friday 29 April 2022

प्रथम प्रविष्टि गांऊं कैसा गीत गांऊं कैसा गीत जो उठकर नील गगन में लहराये मानस के अंतस में घुलकर सागर सी गहराई लाये छेड़े तन मन में उमंग, प्रतिवर्धित करे धैर्य सीमा जन्मभूमि के प्रति मानव में मां से बढ़कर प्रीति जगाये आराधना करूं मां शारद से दे दे मुझको ऐसी शब्दावलि जो स्वयं नियोजित,अवगुंठित हो आड़म्बर में आग लगाये जो खड़े पंक्ति के अन्त छोर, ओढ़े नैरास्य की चादर गांऊं ऐसा गीत जो उनको बरवस विकास धारा में लाये आज समय की मांग कि जब "श्री" आसुरी वृत्तियां आपे से बाहर मेरा गीत जहन में उनके सदबुद्धि की सोच उगाये । श्रीप्रकाश शुक्ल

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