Friday 29 April 2022

विस्मृति की दराज में जब ऐसा कोई कृत्य घटित हो जिस पर पश्चाताप हुआ हो, अन्तस के गहरे में जाकर जिसने प्राण छुआ हो, अर्थ न कोई ऐसी सुधि को मन में रख दिल को तोड़ो उसे भुलाकर सदैव को, विस्मृति की दराज में छोड़ो जब अतीव प्रिय की चाहत, उर को उद्द्वेलित करती हो पर उसे प्राप्त करने की कोई युक्ति नहीं सम्भावित हो उससे जुड़ी सभी सुधियों को मधुर भावनाओं में जोड़ो हितकर है उसे संभालकर, विस्मृति की दराज में छोड़ो लम्बे संघर्षमयी जीवन में कुछ होते हैं ऐसे भी पल जब सभी योग्यताओं के होते भी रह जाते हैं असफल इन्हें बसाकर सतत याद में व्यर्थ न माथा फोड़ो उत्तम है इन्हें समेटकर विस्मृति की दराज में छोड़ो जीवन की राह विलक्षण है सीधी साधी राह नहीं कितनी भी सतर्कता बरतो उलझन आती है कहीं कहीं ऐसे में "श्री" अनुभव विवेक की उजली चादर ओढ़ो भुला अतीत की असफलतायें, नव मंजिल को मुख मोड़ो श्रीप्रकाश शुक्ल 12 comments

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