Friday 29 April 2022

अनहोनी कुछ हुयी इधर विकास की आखों में झूम रहे थे स्वप्न सलोने सर पर उड़ली बांध जुटे वो, ईंटें, पत्थर ढ़ोने एक हवा का झोंका आया संभवतः सुदूर पूरब से फैला गया बिषाक्त अणु कण, सम्पूर्ण विश्व के कोने कोने पल भर में सब बदल गया, त्राहि त्राहि बिखरी चहुं ओर प्राणवायु की घटती मात्रा, रखती सारा शरीर झकझोर अनहोनी कुछ हुयी इस तरह कोई देश न बच पाया जिसने वरती तनिक कोताही कोविद ने जा उसे दवाया सर्व व्याप्य महामारी से कैसे भी निजात पानी थी भारत के धनवन्तरियों को अपनी प्रतिभा अजमानी थी भिड़ गये सभी संकल्पित हो, दो दो वैक्सीन बना ड़ालीं सर्वेभवन्तु सुखना से प्रेरित हो, सबकी झोली में ड़ालीं सारा विश्व चकित है अब, भारत की जय जयकार हो रही भारत की सदभावना नीति, जग में मंगल वीज बो रही ं हमें गर्व ऋषि मुनियों पर हमको सुशिष्ठ संस्कार दिये अपने लिए सभी जीते हैं, हिन्दुस्तानी परमार्थ जिये श्रीप्रकाश शुक्ल

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