Friday, 29 April 2022

मार्चद्वितीय पक्ष की वाक्यांश पूर्ति दो ऋतुओं की संधि हो रही पीली पीली धूप सजी है अलसाये अल्लड़ फागुन के आंगन,भारी भीड़ लगी है ड़ोली में बैठी शरद ऋतु, अपने घर जाने को आतुर सिरमौर पहन सारंग आये, मधुर मिलन की प्यास जगी है ् हंसता हुआ पलास कहता है आओ सारे भेद मिटा दें एक सूत्र बंधने की चाहत धीरे धीरे आज पकी है बेफिजूल हम रहे भटकते अर्थ हीन सिक्के बटोरते बहुमूल्य समय को यों गुजारना जीवन के साथ ठगी है प्रकृति पुरुष की सहभागिन बन, आत्मीयता सिखाती है हर क्रिया प्रकृति की जन हित है "श्री", रसमय प्रेम पगी है श्रीप्रकाश शुक्ल

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