Tuesday 21 December 2021

 आचार्य शुक्ल की चिन्तामणि हो या

बाल्मीकि की रामायण ।
दिनकर का उर्वशी काव्य हो या
तुलसी का मानस पारायण ।।
ये सब ग्रन्थ भाव पूरित हैं,
साहित्य जगत के आभूषण ।
इनमें शशि की शीतलता है,
अम्बरमणि की उष्णता अरुण ।।
अम्बुद जैसे जीवनरस धारक, सागर सा गहरा घनत्व है।
तरुवर जैसी सहिष्णुता उर,
तन मन पोषक भरा तत्व है ।
नदियों जैसा प्रवाह सिखलाते,
जन हित पूरक हर कृतित्व है ।
जीवन यापन के जटिल मार्ग में
इन प्रदर्शकों का अति महत्व है।।
जीवन के तीसरे चरण में जब
एकाकीपन घिर आता है ।
और समय की पाबन्दी से घटना क्रम निजात पाता है ।।
तो ये मनीषियों की ग्रन्थावलियां एक सहारा बन आती हैं।
दूर उदासी कर तन मन की "श्री,"
नवीन ऊर्जा भर जातींं हैं ।।
श्रीप्रकाश शुक्ल

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