Tuesday 21 December 2021

 सासों में भी घुल जाये अंधियारा

कितने भी ज्ञान दीप ज्योतित हों,
कितना भी हो सबल सहारा
होता कठिन उभरना जब सासों में भी घुल जाये अंधियारा
ढ़ेरों तमसाच्छादित घड़ियां सम्भावित हैं जीवन में, आयेंगी
सबसे असहनीय पल वो होता, जब अपने कर जांए किनारा
अत्यन्त जरूरी है मिलना अवसाद और असफलतायें पथ में
पाठ पढ़ा जाती हैं ऐसा, हम जिससे फिसलें नहींं दुबारा
सासों में अगाध गहराया तम, तन को खोखला बनाता है
जैसे तरु में पौढ़ी दीमक खा जाती है सारे का सारा
संतुलन भावनाओं पर रख पाना "श्री" है अद्भुत दैवीय कला
जिसने इसमेंं पायी प्रवीणता कर गया पार उच्श्रंखल धारा
श्रीप्रकाश शुक्ल
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