मुझसे जितना दूर हुए तुम
मुझसे जितना दूर हुए तुम, उतने धड़कन के पास आगये
समय पखेरू जितने दूर गए,सांसों में उतना तुम समा गए
नहीं भूल पाया अब तक मैं, मुरझाई सी वो चितवन,
पलकों में जब अश्रु भरे थे, करुणा भरा थका था तन मन,
पुरबा के झोंकों से जब भी, दिखा कोई उड़ता आँचल
लगा यही तुम लौट दुबारा पास हमारे आ गए
अरी सुमधुरा, हम दोनों की दूरी भी क्या दूरी है
लेकिन हाँ, तन की नहीं मगर मन की मजबूरी है
प्रणय चाहता नहीं मिलन, बसा रहे बस चित्र ह्रदय में
प्राणों की इस अमरबेल को,, केवल इतना ही जरूरी है
प्राणों की इस अमरबेल को,, केवल इतना ही जरूरी है
धीरे धीरे बिरह आग में ,सुख स्वप्न सभी जल जाएंगे
ध्रुव निश्चित है बीते दिन, अब लौट नहीं आ पायेंगे
किन्तु परिस्थितियों ने जो, असमय तोडा सूत्र मिलन का
गीत व्यथा के मेरे ये, संभवतः उसे जोड़ लायेंगे
श्रीप्रकाश शुक्ल
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