स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
स्वर्ण श्रंखला के बंधन में, जकड़े मात्र प्रलोभन सब को
जैसे कूकर, घट के मुंह में, ग्रीवा डाल, ना छोड़े गुड को
मोह,सुरक्षा,सुख साधन का,दिन प्रतिदिन गहराता जाता
अनुचित उचित बिना सोचे,हर एक परिग्रह में जुट जाता
इतिहास साक्षी है ये बंधन, रचता रहा अनेकों कृतियाँ
इसकी उर्बरा शक्ति से उपजीं,अहंकार, मद, दर्प प्रवृत्तियां
इन आसुरी प्रवृत्तियों ने की, बुद्धी भ्रमित, आस्था नश्वर
बंधक लगा समझने खुद को जगत रचियता से भी बढ़कर
अतिशय धन पाकर जीवन का,सच्चा सुख जाता है छिन
मदहोसी दे, वो दर्द मिटाता, भरता जो खाली जीवन
स्वेच्छा से बंधना चाहो, तो बंधो प्यार के बंधन में
ओरों को दे प्यार, सही उद्देश्य भरो अपने जीवन में
प्यार एक स्थिति है जिसमें, औरों का सुख, खुद का सुख है
जीवन आनंदातिरेक करता, वाकी तृष्णा दुःख ही दुःख है
निर्भरता, वैभव सुख साधन पर, सदा रही दुःख दायी है
स्वर्ण श्रंखला के बंधन में बंध, किसे शांति मिल पायी है
स्वर्ण श्रंखला के बंधन में बंध, किसे शांति मिल पायी है
श्रीप्रकाश शुक्ल
Mahipal Singh Tomar | Aug 30 (6 days ago) | ||
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