विजयादशमी विजय पर्व है, विजयी कौन हुआ है लेकिन
विजय, दु:राग्रह, दु:साहस की है, मनमा नी पर अड़े हुए हैं
शकुनि से बढ़कर पारंगत, यद्यपि विदेश में पढ़े हुए हैं
लाखों की चोरी की है पर, लगती चोरी माखन की,
सैकड़ों, हजारों रोज पचाकर, वंशी माधव बड़े हुए हैं
विजयादशमी विजय पर्व है, विजयी कौन हुआ है लेकिन
रावण जैसे शीश कटे भी, जीवित हो उठ खड़े हुए हैं
संस्कार सब खाक, क्षार हैं, चुल्लू भर पानी में डूबे
शर्म, हया की बूँद टिके ना, ऐसे चिकने घड़े हुए हैं
साधन एक वही दिखता "श्री,जिसको बापू मना कर गए
कैसे इन्हें सुधारें हम सब, असमंजस में पड़े हुए हैं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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