जैसे हो तस्वीर भीत पर
मंहगाई उफान लेती, पर अस्मिता आज भी सस्ती है
मेरा देश महान पर यहाँ, चोरों की खासी बसती है
गाँधी जी के तीनो बन्दर बगुला भगत बने बैठे,
खुल्लमखुल्ला बटें रेवडीं,अपनी, अपनों की मस्ती है
सत्ता के गलियारे में, ऐसे बढ़ चढ़ काम हो रहे
जिनका सिर्फ नाम सुनते,संसद की धरती धंसती है
इंसान टंगा है बेबस सा जैसे हो तस्वीर भीत पर
उसकी ये बेबसी, बेबजह, सबको नागिन सी डसती है
सोचा हालात सुधर जायेंगे, धैर्य नहीं छोड़ेगा "श्री"
पर कैसे कोई मुंह सीँ ले, जब जान देश की फंसती है
श्रीप्रकाश शुक्ल
मंहगाई उफान लेती, पर अस्मिता आज भी सस्ती है
मेरा देश महान पर यहाँ, चोरों की खासी बसती है
गाँधी जी के तीनो बन्दर बगुला भगत बने बैठे,
खुल्लमखुल्ला बटें रेवडीं,अपनी, अपनों की मस्ती है
सत्ता के गलियारे में, ऐसे बढ़ चढ़ काम हो रहे
जिनका सिर्फ नाम सुनते,संसद की धरती धंसती है
इंसान टंगा है बेबस सा जैसे हो तस्वीर भीत पर
उसकी ये बेबसी, बेबजह, सबको नागिन सी डसती है
सोचा हालात सुधर जायेंगे, धैर्य नहीं छोड़ेगा "श्री"
पर कैसे कोई मुंह सीँ ले, जब जान देश की फंसती है
श्रीप्रकाश शुक्ल
No comments:
Post a Comment