पलकों पर किसे बिठाऊँ मैं
दिल में केवल तू रहता है पलकों पर किसे बिठाऊँ मैं
ख़ीरा कर देता है नूर तेरा, फिर कैसे आँख उठाऊं मैं
तेरे सिवा न मेरा कोई, फ़ानी जग एक छलावा है
नजरे इनायत मिले तो कैसे, बार बार ललचाऊँ मैं
अरमान एक पाला था दिल में रहमे करम तेरा पाऊँ
पर रूठी किस्मत जगी नहीं निशि दिन अश्रु बहाऊँ मैं
तूने दिया सहारा अब तक, मेरी सारी खामियाँ भुला
अब बैठ गया आ अन्तस में तो कैसे तुझे भुलाऊँ मैं
वाणी में माधुर्य नहीं पर ह्रदय दिखाने आ पहुंचा "श्री "
भक्ति पगे भावों को पो कर गीत माल्य पहनाऊँ मैं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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