एक गरिमा भरो गीत में
अपनी हथेली पै रख प्राण जो, देश रक्षा को रहता निरंतर सजग
कुचल पैर से अस्मिता आज उसकी कहते हो हम हैं सबसे अलग
झूंठे वादों की बैसाखियाँ कांख धर संभव नहीं दूर तक चल सको
चढ़े बार इक, हांडी जो काठ की,बाद उसके स्वयं कोडियों पर बिको
देशरक्षक के प्रति है असद्भावना चैन पाओगे तुम कैसे इस जीत में
देश की छवि न मैली करो आज तुम, है उचित एक गरिमा भरो गीत में
जन हित की प्रत्येक परियोजना, फंस घोटाले में डूबी सभी को विदित
जो थे सत्ता के शासक बने चट्टे बट्टे, थैली में होकर स्वयं सम्मिलित
विश्वास जनता का लुटता रहा रोज ही, सूत्र सौहाद्र का टूट भू पर गिरा
मुंह की खायी, हुए बेदखल राज से, रह गया सारा अनुभव धरा का धरा
विटप लोकतांत्रिक न सह पायेगा तीव्र झोंका भरा जो कुटिल नीति में
देश की छवि न मैली करो आज तुम, है उचित एक गरिमा भरो गीत में
श्रीप्रकाश शुक्ल
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