एक गरिमा भरो गीत में
पनपते हैं अंतर्वेग फैली कुरीत में
सम्बन्ध गहराते हैं परस्पर प्रतीत में
बहस कर के जीतने की तदबीर है गलत
समर्पण ही है सही प्रेमी की प्रीत में
ठहरने हरगिज़ न दें संदेह की सुई कभी
सफल प्रेम पलता है विश्वास की जीत में
अहद है सार्थक जब हर कोई साथ हो
विकसता सद्भाव है सदा सुगढ़ नीति में
व्यर्थ के प्रलाप का कोई भी न अर्थ "श्री "
समझकर रचो, एक गरिमा भरो गीत में
1112 2212 1221 212
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