निकला कितना दूर
नैतिकता रख दूर ताक पर, उलझा धन के प्यार में
अपना उल्लू सीधा करने, धर लेता है कृत्रिम मुखौटा
फिर होड़ लगा कर जुट जाता है, दुष्टों की मनुहार में
गलत तरीके से जब हम, ज्यादह की चाहत करते हैं
कारण बन जाते वो तौर तरीके नैतिकता की हार में
क्या कारण अपनों से अपने दूर दिखाई देते हैं अब
टूट गए क्यों प्रेम के बंधन, क्यों उलझे हम रार में
प्रतिपल दबाव में पलने से मानव तनाव में रहता है 'श्री "
आवश्यक जिसके निराकरण को, सहिष्णुता संचार में
श्रीप्रकाश शुक्ल
No comments:
Post a Comment