बहता है उसे बहने दो
उद्विग्नमना दुखप्लावित हृद से,
स्पर्श सांत्वना का पाकर,
दुःख का निर्झर फूट पड़े तो,
उचित यही है, बांधों मत,
बहता है उसे बहने दो
जीवन के दुर्गम पथ में,
आशाओं और निराशाओं के,
सूरज भी हैं, बादल भी हैं
समझ नियति की चाल,अगर
मन सह सकता है, सहने दो
जग में होता अनियाउ देखकर ,
जन में बढ़ता दुर्भाव देखकर,
उद्द्वेलित होता है यदि मन,
प्रतिबंधित कर, टोको मत,
बात पते की कहता है, कहने दो
जग में झंझावात प्रबल हैं
पर संभव सब के ही हल हैं
शांत भाव, मर्यादित ढंग से
बिनिमय विचार का होने दो
मन में द्वेष न पलने दो अपने ही राग बिगाड़ रहे
उद्विग्नमना दुखप्लावित हृद से,
स्पर्श सांत्वना का पाकर,
दुःख का निर्झर फूट पड़े तो,
उचित यही है, बांधों मत,
बहता है उसे बहने दो
जीवन के दुर्गम पथ में,
आशाओं और निराशाओं के,
सूरज भी हैं, बादल भी हैं
समझ नियति की चाल,अगर
मन सह सकता है, सहने दो
जग में होता अनियाउ देखकर ,
जन में बढ़ता दुर्भाव देखकर,
उद्द्वेलित होता है यदि मन,
प्रतिबंधित कर, टोको मत,
बात पते की कहता है, कहने दो
जग में झंझावात प्रबल हैं
पर संभव सब के ही हल हैं
शांत भाव, मर्यादित ढंग से
बिनिमय विचार का होने दो
मन में द्वेष न पलने दो अपने ही राग बिगाड़ रहे
खिलता चमन उजाड़ रहे
ज़िम्मे से पल्ला झाड़ रहे
जो बोलूँ, बात अखरती है
मैं चुप हूँ,चुप ही रहने दो
विपदा के बादल आते हैं
गर्जना घोर कर डरपाते हैं
दामिनी भयावह लगती है
पर कर्मवीर बन डटे रहो
मन का विश्वास न ढलने दो
श्रीप्रकाश शुक्ल
विपदा के बादल आते हैं
गर्जना घोर कर डरपाते हैं
दामिनी भयावह लगती है
पर कर्मवीर बन डटे रहो
मन का विश्वास न ढलने दो
श्रीप्रकाश शुक्ल
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