गंगे तुम को शत शत प्रणाम
जटा छोड़ तुम भोलेश्वर की उतर धरा पर आई
श्रीप्रकाश शुक्ल
साठ सहस्त्र सगर पूतों की तुम थी जीवनदायी
जीवन के अंतिम पल में तेरी एक बूँद मुंह पाकर
पाते रहे स्वर्ग का आश्रय अनगिन पाप मिटाकर
मन हर्षित होजाता है पाकर तेरे दर्शन अभिराम
गंगे तुम को शत शत प्रणाम
उद्गम से सागर तक तूने पथ ऐसा अपनाया
आँचल बसे करोड़ों जन ने जीवन संबल पाया
पर कृतघ्न हम ऐसे भारी भूल गये तेरा संमान
फेंक कालिमा आँचल में करते रहे सदा अपमान
माँ तेरा अपराधी हूँ मैं त्राहि माम् माँ त्राहि माम
गंगे तुम को शत शत प्रणाम
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