छककर दुःख सुख के घूँटों को
जो इंसान बे सबब ही, औरों को कांटे बोते हैं
नींद बिगडती औरों की, खुद का चैन भी खोते हैं
निश्चय ही वो ख़ुशनसीब, जीवन अश्रांत हो ढ़ोते हैं
जीवन फूलों की सेज नहीं, है गुलाब का पौधा वो
खुशबु-ओ-हुस्न के साथ साथ, जिसमें कांटे भी होते हैं
संसार जलधि,जीवन नौका,लहरें है दुःख सुख जैसीं
सोच समझ कर खेते जो, खाते नहीं कभी गोते हैं
दोस्त भरोसेमंद मिलें तो, समझो मेहर खुदा की है
बरना रोज़ाना कितने, किस्मत फूटी पे रोते हैं
खट्टे मीठे फल जीवन में, कर्मों की फसल उगाती है
जो समझे ना क्या बोना, जागते हुए भी सोते हैं
परहित सेवा से लुत्फ़ मिले और साथ में पाप धुलें
रहते मुगालते में वो, जो गंगा नहा पाप धोते हैं
ऊँगली एक उठाते हो जब, तीन घूरती खुद को "श्री"
हश्र न समझें इल्ज़ामों का, उनके मदरसे थोते हैं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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