तेरे आने का है असर शायद
खुदगरज़ ख्यालात ने, तोड़ी है कमर शायद
मुश्किल है सलीके से हो, जिन्दगी बसर शायद
मेरी ही कोई ख़ता, सीने से लगाई होगी
करता नहीं वो याद अब, जो उस कदर शायद
सुलगती धरती से उठी है, सोंधी सी महक
लगता है तेरे आने का है असर शायद
जिन्दगी की डोरी अभी और खींच सकते थे
यक़ीन तेरे आंने का होता अगर शायद
फरेबों में साथ देना मंज़ूर था ना "श्री" को
हर बात पै वो इस से खफा आये नज़र शायद
श्रीप्रकाश शुक्ल
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