याद आई आज फिर से
श्रीप्रकाश शुक्ल
नभ में घुमड़ आयीं बदलियाँ, गीत पुरबा गा रही है
बैठा हुआ हूँ मैं अकेला, चित उदासी छा रही है
सोचता हूँ मन तेरा, होगा व्यथित अवज्ञात डर से
ले थाल पूजा का सजा, मंदिर गयी होगी तू घर से
याद आई आज फिर से
देखकर लौटे थके खग, गुनगुनाते नीड़ अपने
मेघ से नयनों तेरे, होंगे भरे सुकुमार सपने
साकार हो हर स्वप्न तेरा, चाहता पुरजोर मन से
पर जिन्दगी का अर्थ क्या,रहना पड़े जब दूर सब से
याद आई आज फिर से
क्या याद है तुमने कहा था जिन्दगी है इक पहेली
यदि समझ आ जाय तो, बन कर रहे सच्ची सहेली
जुट हूँ प्रयत्नों में सतत, पाऊँ निभा कर्तव्य मन से
चाहे कहीं भी मैं रहूँ , अनुरक्त तुम मेरे ह्रदय से
याद आई आज फिर से
sunder prastuti..
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