प्राण ही शब्दित हुये
डूबती नैया फंसी , जब भी किसी मझधार में
द्रोपदी ने कृष्ण को, आवाज़ दी जब हो विवश
प्राण ही शब्दित हुये, हर एक आर्त पुकार में
दौड़े चले आये कन्हैया, अनुनीतता के भार में
गज ने पुकारा ईश को, जब प्राण संकट में फंसे,
प्राण ही शब्दित हुए थे ,प्राण घातक रार में
प्रहलाद ने हर यातना , नित्य हंस हंस कर सही,
थी समाहित राम निष्ठा, सांस की हर धार में
जपता रहा था नाम उल्टा, अर्थ समझे ही बिना ,
पर प्राण तो शब्दित रहे, उस दस्यु की गुहार में
शब्द है बस एक ध्वनि, संवेदना मुखरित करे जो,
प्राण जब शब्दित बनें तो सार हो उदगार में
श्रीप्रकाश शुक्ल
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