दिल के उदास कागज़ पर
मैं यायावर रहा घूमता, साथ लिए सुधियों की गठरी,
विरह दुःख से जनित गीत, आ पंहुचे खुद ही होंठों पर
बहुधा इनको गाता हूँ, जब भी सुधि व्याकुल करती है
इक प्रतीत सी आ जाती है, दिल के उदास कागज़ पर
जीवन की दारुण विरह व्यथा, मैंने तो शब्दों में बाँधी,
पर दिल के उदास कागज पर, वो कैसे लिख पायी होगी
कितने ऋतु - चक्र गये, आये, गुज़र गए दिन सहते पीड़ा,
पर निर्मम थापें प्रथम वृष्टि की, वो कैसे सह पायी होगी
अति प्रिय हैं ये गीत मुझे, सिसक रहे जो किसी याद में
लिखे हुए मनुहार किसी की दिल के उदास कागज़ पर,
इनमें उत्तर उस पुकार के, उपजी थी जो मूक ह्रदय से
प्रेम घूँट और सरस रार की मीठी छुवन समेटे अन्दर
छलक पड़े अनुभूति अश्रु, दिल के उदास कागज़ पर जब,
सीमाँ लांघ कल्पना की खुद, भाव सजे गीतों में मेरे
इन्हें सौंपता हूँ विधि की अविरत गतिमय समय धार को
निश्चय ही पहुंचेंगे उन तक जो, मीत रहे जन्मों से मेरे
श्रीप्रकाश शुक्ल
No comments:
Post a Comment