समय की शिला पर
समय की शिला पर हैं कुछ चित्र अंकित ,
आज के युग में जो भ्रान्ति फैला रहे हैं
औचित्य जिनका न कुछ शेष दिखता
चलना गतानुगति ही सिखला रहे हैं
साधन नहीं थे कोई आधुनिक जब,
रीते ज़हन को जो करते सुचालित
चित्र अंकित किये कल्पना में जो सूझे
कोई था न अंकुश जो करता नियंत्रित
दायित्व है अब, नए चिंतकों का
आगे आयें, समीक्षा करें मूल्यवादी
तत्व जो बीज बोते, असमानता का
मिटायें उन्हें हैं जो जातिवादी
हैं कुछ मूल्य, जो मापते अस्मिता को
व्यक्ति के वर्ण और देह के रंग से
लिंग भेद को ,कुछ न भूले अभी भी
कलुष ही बिछाया विकृत सोच संग से
समय आगया है हटायें ये पन्ने
लिखें वो भाषा जो सब को समेटे
विकासोन्मुखी हों, नीतियाँ हमारी
समय की शिला पर पड़े धब्बे मेंटे
श्रीप्रकाश शुक्ल
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