Sunday, 20 May 2012

मुक्तिका ००३

 ये जो सच है  क्या वो सच है ?आज  चर्चा चल रही है 
 क्यों ना बोलूँ साफ़ मैं,  ख़ामोशी खुद की खल  रही है 

शहर के या गाँव के हों, पीटते सब लोग सर,  
स्वार्थपरता की  सियासत हर किसी को छल रही है 

पेट खाली ही रहा मेहनत मशक्कत बाद भी, 
जाल डालें,फितरती जो, दाल उनकी गल रही हैं 

संच है क्या और  झूठ क्या है, क्या ज़रुरत जानने की,
ख्वाहिश-ए-शोहरत बुलंदी, भूख  बनकर जल  रही  है 

ध्रुव सत्य है केवल यही, आया यहाँ जो, जाएगा,
किसलिए अमरत्व की फिर लालशा दिल पल रही है 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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