Sunday, 20 May 2012

मुक्तिका 002
 
बुझा हुआ दिल नहीं संभलता मुझे पता है
गढ़ी फांस का दर्द  ना टलता मुझे पता है

दान दक्षिणा देते हैं कितने ही पर ,
बच्चा अनाथ कैसे पलता मुझे पता है

झांसा देकर लूट रहे भोले भालों को,
दर्द भूख का कैसे खलता मुझे पता है

झूठ  गवाही देते हैं वो जाकर रोज़ कचहरी में
लेना देना कैसे चलता मुझे पता है

तपना बहुत जरूरी है खुद को खरा बनाने को
सोना गहनों में कैसे ढलता मुझे पता है 


श्रीप्रकाश शुक्ल

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