मुक्तिका 054
नैराश्य ओढ़ जो सोये हैं, उनको झकझोर जगाता हूँ
निश्चय होगी धूप डगर में, झुलसेगा तन मन सारा
जो ख़ुशी ख़ुशी तैयार, झेलने, साथ उन्हें ही ले जाता हूँ
राहें कभी नहीं बदलेंगी, युग युग से जो चली गयीं
अपनी राह बदल लो खुद से, मूल मंत्र ये बतलाता हूँ
मन में जो संदेह उग बढे, ले बैठे आकार ताड़ का ,
अपने भी घर में अब कोई, मीत नहीं मैं पाता हूँ
महज़ ऊँचाई पा लेने से, मन को शांति नहीं मिलती,
शांति चाहिए? प्यार बाँट दो, यही रोज समझाता हूँ
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
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