भंग हुआ ज्यों सपना
झांसा देते रहे दोस्त को,
गढ़कर झूंठे नए कथानक I
भिक्षा में पाते जो टुकड़े ,
रचते उससे कृत्य भयानक II
आतंकी गतिविधियों से,
ढाया जग में नित्य कहर I
नीवं मित्रता की आधारित,
अविश्वास की रेती पर II
फिर जब समझे चतुर मित्र,
कैसे वो अब तक छले गए I
आ धमके डोली लेकर,
दूल्हा औ सामां ले चले गए II
सारा आवाम था हैरत में,
ठनकाता माथा अपना I
आँखें फटीं, फटीं, रह गयीं ,
भंग हुआ ज्यों सपना II
श्रीप्रकाश शुक्ल
झांसा देते रहे दोस्त को,
गढ़कर झूंठे नए कथानक I
भिक्षा में पाते जो टुकड़े ,
रचते उससे कृत्य भयानक II
आतंकी गतिविधियों से,
ढाया जग में नित्य कहर I
नीवं मित्रता की आधारित,
अविश्वास की रेती पर II
फिर जब समझे चतुर मित्र,
कैसे वो अब तक छले गए I
आ धमके डोली लेकर,
दूल्हा औ सामां ले चले गए II
सारा आवाम था हैरत में,
ठनकाता माथा अपना I
आँखें फटीं, फटीं, रह गयीं ,
भंग हुआ ज्यों सपना II
श्रीप्रकाश शुक्ल
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