तम से लड़ता रहा, दीप जलता रहा
एक नन्हा सा दिया,
बस मन में बैठा ठान हठ
अंधियार मैं रहने न दूं
मैं ही अकेला लूं निपट
मन में सुदृढ़ संकल्प ले,
जलने लगा वो अनवरत
संत्रास के झोकों ने घेरा
जान दुर्वल, लघु, विनत
दूसरा आकर जुड़ा,
देख उसको थका हारा
धन्य समझूं, मैं स्वयं को,
दे सकूं मैं, जो सहारा
इस तरह जुड़ते गए,
और श्रृंखला बनती गयी
निष्काम,परहित काम आयें
भावना पलती गयी
एक होता यदि अकेला,
अभितप्त होकर टूट जाता
मिल बनें, अविजेय दल
सघन तम भी मात खाता
पंक्ति का प्रत्येक मानिक,
नए युग की नयी शक्ति
निश्वार्थ सेवा में समर्पित
मन संजोये, त्याग, भक्ति
तम से लड़ता रहा, दीप जलता रहा
इक दूसरे को सहारा दिए
ज्योतिमय हो जगत और फैले खुशी
शुभकामनाएं, ह्रदय में लिए
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