वर्ष नया मंगलमय कहने
वर्ष नया मंगलमय कहने आओ घर घर आज चलें
जाकर ज्ञान सुपथ का दें जिससे सात्विक भाव पलें
धन दौलत की लोलुपता, इतनीअधिक न बढ़ जाए
दुर्भाव पूर्ण जीवन जी कर, खुद को ही हम स्वयँ छलें
सोच समझ पग मग में रक्खें, भूल कहीं न हो जाए
मंजिल तो मिलना दूर रहे अनुतापों में हाथ मलें
प्रजातंत्र में नितांत संभव, इक विपन्न राजा बन जाए
ऐसे में आप स्वयं सुधरें, न कि शासक को देख जलें
शुभकामना उन्हें भी भेजी जिनकी बुद्धि हिरानी "श्री"
उचित यही चुपचाप रहें,ना संसद छाती पर मूंग दलें
श्रीप्रकाश शुक्ल
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