देख पाओगे कभी
जिस समय विश्वास भर, मेहनत से जूझोगे कभी
दुस्वारियों से जगत की , न कष्ट पाओगे कभी
दुस्वारियों से जगत की , न कष्ट पाओगे कभी
रहमत बरसती खुदा की, रहती है कितनी शख्स पर
जब तक है परदा आँख पर, न देख पाओगे कभी
जब तक है परदा आँख पर, न देख पाओगे कभी
आवरण यदि अहम का, ओढ़े रहोगे हर समय
निर्वस्त्र हो तुम किस तरह, न समझ पाओगे कभी
निर्वस्त्र हो तुम किस तरह, न समझ पाओगे कभी
जब तलक ये ख़याल घर है, मेरे सिवा सब गलत हैं
तब तलक है कौन सच्चा, न परख पाओगे कभी
तब तलक है कौन सच्चा, न परख पाओगे कभी
सब उलझनों की नींव है, मात्र "श्री " मन का अँधेरा
होगा न ऐसा बोध जब तक, न सुलझ पाओगे कभी
होगा न ऐसा बोध जब तक, न सुलझ पाओगे कभी
श्रीप्रकाश शुक्ल
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