धन्यवाद स्वीकार कीजिए
कौन विश्वकर्मा जगती का, किसने नदी पहाड़ बनाये
किसने रचे चाँद और सूरज, किसने नभ तारे चमकाये
अस्थि मांस के पिंजर भीतर, किसने भरे भाव अलबेले
प्रकृति सखी को किसने बोला, पुरुष गोद में हरदम खेले
इस भूतल पर मात्र प्रकृति ही, एक आवरण, ऐसी कृति है
जिसका सृजन हुआ मानव हित, हर अवयव सेवा अर्पित है
क्या है कोई शक्ति अलौकिक, जिसने रचना की मानव की
तदोपरांत की कुदरत रचना,जो सहचरी बनी जीवन की
प्रकृति पुरुष की उद्गम गाथा, मानव बुद्धि चकित करती है
और प्रकृति की संचालन विधि, भक्ति भाव मन में भरती है
विज्ञानं,ज्ञान के अर्थ समूचे, समझ सके न भेद जगत का
पुरुष और मानव का अंतर, अंतर ईश्वर, शाश्वत सत का
ज्ञात नहीं वो कौन, कहाँ है, जिसने सारा चक्र चलाया
हारे थके मनीषी सारे, पर यथार्थ कुछ समझ न आया
अपनी प्रवृत्ति अपने स्वरुप का, कुछ तो भी आभास दीजिये
रोम रोम आभार पूर्ण प्रभु, धन्यवाद स्वीकार कीजिये
श्रीप्रकाश शुक्ल
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