काल की क्यों करते परवाह
काल की क्यों करते परवाह, न जानें कल क्या होगा
सारा सार इसी पल में है, ये संभला तो सब हल होगा
काल हमारे नहीं साथ, ये केवल मन का भ्रम है
परिवर्तन तो अटल , प्रकृति का निश्चित क्रम है
भूत भविष्य दोनों ही हैं, केवल मन की कल्पना मात्र
वर्तमान ही सोच अकल्पित, सत्य निरंतर, एकमात्र
जब वर्तमान की चिंता ही, होगी चिंतन का आधार
जीवन विकसेगा विविध रूप सहज सुगम इच्छानुसार
ऐसा कोई नहीं जगत में, काल जाल में जो न फंसा
कालांतर में कुटिल काल के , कटु चंगुल में जो न कसा
लेकिन वही शीर्ष पर पहुंचा, जिसने साहस, धैर्य न छोड़ा
बुद्धिबल पूर्ण विकल्पों से प्रतिकूल हवाओं को मोड़ा
क्यों डरते झंझावातों से, क्यों आश्रित रेखाओं पर
क्यों होते हतप्रभ निराश , जीवन की दुर्गम राहों पर
अंतरतम खोजो, समझो, सारी शक्ति निहित अन्दर
सब अभीष्ट पा सकते हो, बिना काल की चिंता कर
श्रीप्रकाश शुक्ल
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