किन्तु अचानक लगा
वैसे तो जंतर मंतर पर, भीड़ सदा ही रहती है
अश्रु कणों से गीली मिटटी, नित नयी कहानी कहती है
किन्तु अचानक लगा, वहां जो पहुंचे थे अप्रैल पांच को
मांग रहे थे, भारत भू पर, जला न पाए आंच सांच को
जीवन की हर गति विधि में भरपूर समाया दुराचरण
भ्रष्टाचार,कुटिलता, चोरी, लगते मानव को, सफल आचरण
सत्ता के नायक, नेता दिखते , जैसे हों मूक, बधिर
अपनी खाली जेबें भरते, मौका ऐसा, कब आएगा फिर
इस बार मनीषों ने मिलकर, इक युक्ति नयी मन में ठानी
चाहे प्राण न्योंछावर हों ,पर हो न सकेगी मनमानी
जनता और सांसद मिलकर, लोकपाल बिल लायेंगे
भ्रष्ट, दुराचारी तुरंत ही कठिन ताड़ना पायेंगे
श्रीप्रकाश शुक्ल
वैसे तो जंतर मंतर पर, भीड़ सदा ही रहती है
अश्रु कणों से गीली मिटटी, नित नयी कहानी कहती है
किन्तु अचानक लगा, वहां जो पहुंचे थे अप्रैल पांच को
मांग रहे थे, भारत भू पर, जला न पाए आंच सांच को
जीवन की हर गति विधि में भरपूर समाया दुराचरण
भ्रष्टाचार,कुटिलता, चोरी, लगते मानव को, सफल आचरण
सत्ता के नायक, नेता दिखते , जैसे हों मूक, बधिर
अपनी खाली जेबें भरते, मौका ऐसा, कब आएगा फिर
इस बार मनीषों ने मिलकर, इक युक्ति नयी मन में ठानी
चाहे प्राण न्योंछावर हों ,पर हो न सकेगी मनमानी
जनता और सांसद मिलकर, लोकपाल बिल लायेंगे
भ्रष्ट, दुराचारी तुरंत ही कठिन ताड़ना पायेंगे
श्रीप्रकाश शुक्ल
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